छठ पूजा का इतिहास, छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई, छठ पूजा की पूरी जानकारी हिंदी में

छठ पूजा, छठ पूजा का इतिहास, छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई, छठ पूजा की पूरी जानकारी हिंदी में

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छठ पूजा का इतिहास, छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई, छठ पूजा की पूरी जानकारी हिंदी में

छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा का इतिहास

छठ पूजा या छठ पर्व

छठ पूजा या छठ पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है यह त्यौहार हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला छठ का त्यौहार है 

छठ पूजा के इस अनुपम लोक पर्व पर सूर्य की उपासना के साथ व्रत किया जाता है 

यह त्यौहार मुख्य रूप से बिहार झारखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व भाग के साथ नेपाल के तराई क्षेत्रों में भी मनाया जाता है

 हमारे देश में ऐसा कहा जाता है कि यह त्यौहार यह छठ का पर्व बिहारियों का सबसे बड़ा त्यौहार है बिहार की संस्कृति में छठ का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है 

लेकिन वर्तमान समय में यह केवल बिहार ही नहीं भारत के अधिकतर राज्यों में यह मनाया जाने लगा है और इसकी झलक देश के कोने कोने से देखने को मिलती है

Chhath puja 

छठ पूजा को भारत में मनाने वाले लोगों में हिंदू ही नहीं बल्कि इस्लाम के धर्मावलंबियों को भी मनाते हुए देखा जाता है धीरे-धीरे यह त्यौहार प्रवासी भारतीयों के साथ पूरे विश्व में प्रचलित होने लगा है 

यह छठ पर्व सूर्य पूजा प्रकृति जलवायु और उनकी बहन मानी जाने वाली छठी मैया को समर्पित है पृथ्वी पर उन्हें देवी देवताओं को बहाल करने के लिए सुविधा शुभकामनाएं देने के लिए प्रचलित है

मूर्ति पूजा नहीं

ध्यान देने वाली बात यह है कि छठ पूजा के समय कोई भी मूर्ति पूजा नहीं की जाती है उसमें छठ पर्व मनाने वाले लोग सूर्य की उपासना करते हैं और जल से अर्घ देते हैं

पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण के अनुसार अगर हम विशेषज्ञों का माने तो छठ पर्व इको फ्रेंडली पर्यावरण के साथ अनुकूल हिंदू त्यौहार है 

इसमें किसी भी प्रकार का पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है और बड़े धूमधाम के साथ पर्यावरण और प्रकृति को ध्यान में रखकर इस त्यौहार को मनाया जाता है

छठ पूजा का इतिहास

छठ पूजा के शुरुआत के संदर्भ में बात करें तो यह छठ पूजा की कथा के अनुसार जब प्रथम देवासुर संग्राम में असुरों के हाथों से देवता हार गए थे 

तब माता अदिति ने अपने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवार्य के मंदिर में छठ मैया की आराधना की थी तब छठ मैया ने उन्हें एक सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वर दिया था

 तब आदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलाई थी कहा जाता है कि उसी समय से देवसेना सती देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और तब से छठ पर्व का चलन शुरू हो गया

छठ पर्व का नाम कैसे पड़ा

यह त्यौहार छठ पर्व का त्यौहार तिथि की सष्टि का अपभ्रंश शब्द है छठ और यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाने दीपावली मनाने के बाद 6 दिन होने पर षष्ठी तिथि को यह छठ पर्व मनाया जाता है 

इसलिए इस त्यौहार का नाम छठ पर्व रखा गया है जिसमें प्राकृतिक सौंदर्य के साथ नदियों को घाटों को तालाबों को साफ सफाई के साथ सजाया जाता है और वहां पर छठ पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है

लोक आस्था का पर्व

यह छठ पर्व लोक आस्था का पर्व है इसमें पूरी तरीके से वैदिक और प्राकृतिक रीति-रिवाजों और परंपराओं का ध्यान रखा गया है

 प्रातः जागना और व्रत करना सूर्य की पहली किरण लेना इत्यादि ऐसे कार्य इस पूजा यानी छठ पर्व में के जाते हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण के लिए और प्रकृति के लिए काफी लाभदायक हैं

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इतना ही नहीं छठ पर्व मैं प्रातः उठकर सभी लोगों को नए एनर्जी और ताकत के साथ यह पर्व मनाते हैं 

शाम के समय घाट पर इकट् होकर लोग पूजा पाठ करते हुए भगवान को खुश करने का प्रयास करते हैं और अगले दिन सुबह से आकर सूर्य भगवान को उगने का इंतजार करते हैं

छठ पूजा का इतिहास

छठ पूजा की शुरुआत परंपरा के अनुसार पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल से मानी जाती हैं इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं

रामायण काल में

छठ पूजा की शुरुआत रामायण काल से ही मानी जाती है भगवान राम और सीता ने भी अयोध्या लौटने के बाद अपने राज्य में रामराज्य स्थापित करने के लिए षष्टि तिथि को व्रत किया था और सूर्य देव की आराधना की थी पूजा पाठ करने के बाद सूर्य देव से वरदान प्राप्त किया था

महाभारत काल में 

यह मान्यता है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत के समय में भी हो चुकी थी सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण देव ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी कर्ण भगवान सूर्य के बहुत बड़े भक्त थे वह प्रतिदिन घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे

 जिसके कारण सूर्य के आशीर्वाद से ही वह महान योद्धा बने थे और छठ में अंगदान करने की प्रवृत्ति महाभारत काल से ही मानी जाती है

पांडव

ऐसा माना जाता है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार द्रोपदी ने भी पांचों पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन के लिए छठ का व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी जिसके परिणाम स्वरूप पांडवों को उनका सहारा खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया था

पुराणों में

पुराणों में भी ऐसा माना जाता है कि राजा प्रियवर को कोई संतान नहीं था तब महर्षि कश्यप ने पुत्र श्री यज्ञ कराकर उनके संतान उत्पन्न होने के लिए छठ पूजा करवाया था और 

रानी ने पुत्र की इच्छा में छठ व्रत करके सूर्य भगवान को खुश किया था जिससे उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी और यह पूजा उन्होंने छठ की तिथि को किया था

छठ पूजा की पूरी जानकारी

Chhath puja के समय सुंदर एवं मनमोहक गीतों के माध्यम से वहां के माहौल को आनंदमय बनाया जाता है और लोग एकता के साथ भक्ति भाव के साथ वह अपने इस मनोरम त्यौहार को मनाते हैं

छठ पर्व के लिए तैयारियां कई दिनों पहले शुरू हो जाती है इस पर्व को मनाना आसान नहीं होता लेकिन लोग बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनमोहक तरीके से इस पर्व को खुशी खुशी मनाते हैं जिसमें महिलाओं के साथ पुरुष भी व्रत रखते हैं

छठ पूजा का व्रत

कई जगहों पर छठ का व्रत 4 दिन से लेकर 6 दिन तक चलता है लेकिन कई जगहों पर यह व्रत सिर्फ 2 दिन किया जाता है जिसमें पहले दिन लोग फल फूल के साथ सारा सामान लेकर पूजा का सामान भी साथ में लेकर पूरी तैयारी के साथ छठ घाट की ओर प्रस्थान करते हैं 

जहां पर जाकर पूजा पाठ करके अर्घ्य देकर और मनमोहक गीत संगीत गाकर Chhath पूजा का आयोजन करते हैं

अर्घ्य देते हैं

कई जगहों पर इस दिन जागरण भी किया जाता है और लोग छठ घाट पर रात भर जागरण करते हुए मनोरंजन गीत संगीत के माध्यम से रात भर जागते रहते हैं

अगले दिन लोग ब्रह्म मुहूर्त में छठ मैया का डोला सजाकर वृत्ति लोग छठ घाट पर आते हैं और यहां व्रत करने वाले लोग जल में प्रवेश करके सूर्य देव को मनाने का प्रयास करते हैं और जल्दी उदय होने को कह कर दर्शन करने की प्रार्थना करते हैं

 और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और छठ मैया की कथा सुनते हैं और अपने सुख समृद्धि की कामना के साथ कुशलता के भी कामना करते हैं इसके बाद व्रत करने वाले पुरुष या स्त्री गर्म दूध पीकर अपना व्रत तोड़ते हैं और फिर कुछ पकवान बनाकर खाते हैं

इस तरीके से यह आस्था का महा लोक पर्व छठ का त्यौहार कैसे मनाते हैं इसके बारे में बताया गया और यह त्यौहार बिल्कुल पर्यावरण मित्रता का त्यौहार है इसमें किसी भी प्रकार का प्रदूषण या पर्यावरण के विपरीत कोई भी व्यवहार नहीं किया जाता है इसमे एकता और संस्कृतियों का मेल माना जाता है अब यह त्यौहार धीरे-धीरे पूरे भारतवर्ष में दिखाई देने लगा है

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